Description
पुस्तक परिचय
डॉ चन्द्रभूषण वर्मा प्रणीत ‘भारत एक सच’ नामक पुस्तक भारत से सम्बद्ध उन समस्त मूलभूत मुद्दों की सनप्रोक्ति है, जिसका बोध हर शिक्षित भारतीय के लिए वांछनीय है. पुस्तक में निम्नांकित विषयों की यथावत् प्रामाणिकता समुदित है :
- क्या फ़ारसी इतिहासकार फ़रिश्ता के अनुसार पैगम्बर नूह के पौत्र व हैम के पुत्र हिन्द का शासन कभी सम्पूर्ण भारतवर्ष में कायम था ? यदि था, तो प्राचीन भारतीय इतिहास में इसका उल्लेख क्यों नहीं है ? क्या पारंपरिक फरिश्ताई अवधारणाओं के अनुरूप ही भारत को फ़ारस में ‘हिन्दुस्तान’ और अरब में ‘हिन्द’ का नाम दिया गया है?
- किसने भारत की पहली हिन्दू धर्म-संहिता (1776 ) तैयार की; और क्यों उसका नाम – ‘जन्तु संहिता’ (Laws of Gentoo) रखा? हिन्दुओं के सन्दर्भ में ‘जंतु’ शब्द का प्रयोग कब से स्रस्त हुआ ?
- क्या विलियम जोन्स द्वारा तैयार कराई गयी भारत की दूसरी ‘हिन्दू-धर्म संहिता’ का आधार छठी सदी के रोमन सम्राट जस्टीनियन-1 की ख्रीस्ती संहिता है ? क्या उक्त संहिता का अनुकूलन भारत में ‘मनुशास्त्र’ के नाम से किया गया है? क्या प्राशासनिक व वैधानिक सुविधा के अनुरूप ही भौगोलिक ‘हिन्दू’ को 1796 प्रभृति एक मज़हबी पहचान दी गयी है ? क्या हिन्दू शब्द श्रौत या स्मार्त परम्परा (सनातनी परम्परा के प्राचीनतम सूत्र) में कभी प्रयुक्त भी हुआ है?
- क्या मध्यकालीन पश्चिमी समाज की नस्ली परिशुद्धता या कास्टस (लातिनी: castus; आईबेरीयन: casta ‘कास्टा’) के सिद्धान्त पर मध्यक़ालीन पश्चिम के चार वर्गीय प्रारूप – क्लर्जी (पुरोहित), नॉबिलिटी (सामन्त/कुलीन), कॉमनर (जनसाधारण) व सर्फ़ (सर्वहारा) – को भारत के चार वर्णों का पर्याय घोषित कर दिया गया है; और गीता-उपदिष्ट ‘गुण-कर्म-आश्रित’ – वर्ण (श्रीमद्भगवद्गीता 13) को वंशानुगत व जातिगत बनाया गया है? [जातियाँ (biological births) तो आनुवंशिक (hereditary) मानी भी जा सकती हैं; और हज़ारों में गिनी भी जा सकती हैं: किन्तु यह कैसे तय किया गया है कि “जातियों का वर्गीकरण केवल चार ही होना चाहिए; वह भी जन्मजात? – क्या ऐसी सामाजिक आभियांत्रिकी पश्चिमी उपनिवेशवादी मानसिकता की अभिव्यक्ति तो नहीं है?
- किसने भारत की सनातनी परम्परा की एक मज़हबी व्याख्या कर उसे ‘हिंदू धर्म’ का नाम दे दिया; और फिर भारत में कानूनन मान्य भी बना दिया ?
- क्या 1901 की भारतीय जातीय जनगणना केवल हिंदुओं तक ही सीमित रही थी? क्या उक्त जनगणना के आधार पर ही संविधान में ‘हिन्दू’ शब्द की व्याख्या की गई है? (संविधान के अनुसार “हिंदुओं के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत सिक्ख, जैन या बौद्ध धर्म के मानने वाले व्यक्तियों के प्रति निर्देश है और हिंदुओं की धार्मिक संस्थाओं के प्रति निर्देश का अर्थ तदनुसार लगाया जाएगा” ? (देखें भारतीय संविधान अनुच्छेद 25 के स्पष्टीकरण 2 – खंड (2) के उपखंड ‘ख’).
- क्या आधुनिक भारतीय शिक्षा का आधार जातिगत ‘डाउनवार्ड फ़िल्टरेशन’ का सिद्धांत’ रहा है ? ततः ‘सम्पूर्ण शिक्षा’ का अभियान आज भी क्या एक मिथ बन कर नहीं रह गया है ?
- यदि जाति-प्रथा भारतीय ईसाई व मुसलमानों में भी प्रचलित है तो ऑक्सफ़ोर्ड अंग्रेजी शब्दकोश आदि ने इसे हिन्दू धर्म की विवेचना तक ही सीमित क्यों रखा है ?
- रॉबर्ट काल्डवेल का द्राविड़ी भाषाई अधिवाक् यदि युक्त है तो तमिल आदि दक्षिणी भाषाओं में प्राकृत भाषा व साहित्य का इतना प्रबल प्रभाव कैसे हुआ है ? ‘मणिमेखलाई’ जैसी प्राचीनतम तमिल रचनाएँ या संगम साहित्य में जैन-बौद्ध कथानकों का अन्तर्भाव व संनिवेशन का क्या आधार हो सकता है ? तमिल की ‘पेरुण्णकठाई’ क्या ‘बृहद्कथा’ का अनुकूलन नहीं है ? क्या पम्पा, पोन्ना, रान्ना जैसे जैन मुनि व प्राकृत आचार्यप्रवर कन्नड़ साहित्य के जनक नहीं माने जाने चाहिए ? क्या तेलुगु साहित्य में सातवाहन राजा व प्राकृत कवि हाल व प्राकृत आचार्य लक्ष्मीधर लक्ष्मण सूरि की छवि साफ़ नहीं दिखती ? क्या मलयाली साहित्य में प्राकृत रचनाकार रामपाणिवाद व कृष्णलिलासुक की कुहुक सुनाई नहीं पड़ती ? क्या भाषाई आधार पर उत्तर-दक्षिण के नाम से भारत का भेद युक्त है ?
यदि आप उपर्युक्त प्रश्नों का प्रामाणिक उत्तर पाना चाहते हैं तो आज ही पढ़े – डॉ. चन्द्र भूषण वर्मा, डी.लिट् की नवीनतम कृति – भारत एक सच.
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